बाहर निकल कर देखतें है

हमारे पास जो कुछ है
उसी में जी कर देखतें है
मज़िल मिल ही जाएगी
रास्ते बदल कर देखतें है ।।

जिंदगी यूँ भी हसीन है यज्ञ
दिल की चाहतें कब कम हुई
अब चाहतों के दरिया से
बाहर निकल कर देखतें है ।।

दौड़ता भागता ही रहा तू
ज़माने के कई धोखे के पीछे
मन को कठोर कर यज्ञ तू
अपने मन को थाम कर देख
अब सच के लिए थम कर देखतें हैं ।।

मनुजता … Let’s fight with together

अब तो मनुजता निभाना होगा
खुद को औरों को बचाना होगा ।।

मनुजता ऐसे निभाते हैं हम
जरुरतों में हाँथ खींच जाते है हम
छोटी बड़ी चीजों का रख कर ध्यान
और जरुरतों में दाम बढ़ाते है हम ।।

सलाम है नमस्कार है दंडवत प्रणाम है
वो जो खड़े है दीवार की तरह महामारी में
हम सलामत बैठे है अपने अपने घरों में
…और वो जो लड़ रहे है
तेरे मेरे वतन की ख़ातिर अस्पतालों में ।।

कभी चुम कर कभी गले मिला करते थे
अब हाँथ जोड़ अभिवादन किया करते है ।।

खुद को औरों को ये समझाना है
सुरक्षा ही बचाव है ये जताना है ।।

जड़ चेतन… जागृत करूँगा

गिर कर चिंटीओं के जैसे
बारंबार लगातार प्रयास करूँगा
मन में है पर्वत अराजकता का
अधर्म का उसे पार करूँगा ।।

है अडिग वो शिखर
किन्तु अटल नहीं
है मदमस्त अहंकार में
अभिमान में उसे चूर करूँगा ।।

हूँ छोटा सा प्रकाश पुंज
घनघोर अंधेरे में भी मार्ग करूँगा
पुष्प चुन लेना तुम सभी
कर्मवीर हूँ शूलों पे पग धरूँगा ।।

मन मलिन है स्वार्थ लोभ है
अभिषेक कर पवित्र करूँगा
असत्य के उन्माद को सत्य के बाण से
पराजय को परास्त करूँगा ।।

एक होते है अनेक यहाँ
उस असत्य को उस शीशमहल को विध्वंस करूँगा
बारंबार लगातार प्रयास करूँगा सुदृढ़ करूँगा
पुनः अपने जड़ चेतन को जागृत करूँगा ।।

कम हुई…

न मज़िल मिली
न कदम बढ़ी
न दूरियाँ कम हुई ।।

न लकीर घटी
न लकीर बढ़ी
कोशिशें ही कुछ कम हुई ।।

न तुम बदले
न हम बदले
सिर्फ ऐतबार ही कुछ कम हुई ।।

न बातों का असर घटा
न ही बढ़ा
दिलों में जरुर, अहसास कुछ कम हुई ।।

कम हुई न गुमान
दरमियाँ आई दरार
और नतीजन…
रिस्ते टूट गये ।।

Quote…

लगता नहीं मन बिसरायेगा उसे
आना जाना है अब तक बाकी है
स्मृतिपटल ने संजो रखे है उसे
अपनी हार को बस सीढ़ी बनाना बाकी है ।।