क्यों … भुलाना मुश्किल है ?

रोज़ देखता हूँ सुनता हूँ
रोज़ तेरी ही बात
अपने दिल से करता हूँ
पर क्यों वो मुझे
देख नहीं पाती
सुन नहीं पाती
समझ नहीं पाती
ऐसा क्यों है … ?
क्या दिल से दिल का
फासला लम्बा है ?
क्यों दिल से दिल तक
जाना मुश्किल है ?
क्यों तेरा मुझे
समझना मुश्किल है ?
पर…
क्यों मुझे तुझे
भुलाना मुश्किल है ?

क्या भूल जाऊँ मैं … ?

ये दिल क्या याद रखूँ क्या भूल जाऊँ मैं
वक़्त की चाल को क्या आँख दिखाऊँ मैं ।।

मोहब्बत की मीठी बातें तो भाती है मग़र
इस ज़माने के तंज को कैसे भूल जाऊँ मैं ।।

अच्छा बूरा सब लिखा है तक़दीर में यज्ञ
फ़क़त क्यों बूरे को क्यों बार बार दोहराऊँ मैं ।।

वक़्त जो बदला तो तेरा भी ज़ख्म मिला
जो प्यार मिला था तुमसे उसे क्यों न गाऊँ मैं ।।

वक़्त गुजरता है और पीछे यादें छोड़ जाती है
तू ही बता क्या याद रखूँ क्या भूल जाऊँ मैं ।।

चाँद की तरह

रात बढ़ती हुई
घट जाएगी
इस चाँद की तरह
मेरी याद भी
तुम्हें यूँ ही सताएगी
तुम्हारे अंजुमन में
लुकछूप जाएगी
फिर उभर कर आएगी
इस चाँद की तरह ।।

गुरु कबीरा

कई रिश्ते सिये है मैंने
कुछ में गाँठ आई है
जुलाहा तुझा कोई
रंगरेज है ही नहीं
तुमने तो पूरी की पूरी
चादर ही रँगाई है ।।

क्या सच क्या झूठ मेरा
जब कह कर मैंने
नज़र न उठाई है
तेरे राह पे चलना है
गुरु कबीरा …
गुरु ने ही तो
प्रभु द्वार बताई है ।।

जय गुरु महादेवा …

छोटी सी अरज विनती है मोरी हो देवा
दरश दीजो अपने चरनन की महादेवा ।।

शीश मेरी हो और चरण तुम्हारी हो देवा
बारी बारी बलहरी जाऊँ शीश नवाऊँ देवा ।।

हे चंद्रमौली शूलपाणि भस्माङ्गे जटाघर गंगे
नमामि कैलाशपति जय जय गुरु महादेवा ।।

हे फणिनाथ नीलकंठ त्रिलोचने शिवशंकरे
नमामि नमामि उमापति जय गुरु महादेवा ।।

फ़ुर्सत मिले तो … पढ़ लेना

इश्क़ के पन्ने पर
इक तेरा नाम ही लिखा है
फ़ुर्सत मिले तो कभी पढ़ लेना …

के अपना चैन सुकून सब
इक तेरे नाम लिखा है
फ़ुर्सत मिले तो कभी पढ़ लेना …

मेरे हँसने रोने की है बातें
कुछ तन्हाई भी लिखा है
फ़ुर्सत मिले तो कभी पढ़ लेना …

कुछ सुनी कुछ अनसुनी किस्से
कुछ अपने राज़ भी लिखा है
फ़ुर्सत मिले तो कभी पढ़ लेना …

खबर महकने लगी है …

खबर ये महकने लगी है
मुझे तू इश्क़ करने लगी है ।।

फ़िज़ाओं ने रंग है घोला
के कलियाँ चटकने लगी है ।।

ठंडी पुरवाई चलने लगी है
तेरी याद फिर दहकने लगी है ।।

क्या फ़र्क पड़ता है जमाने को
वो ज़ख्मों से लुफ़्त लेने लगी है ।।

है इश्क़ से

कभी कुछ कहता हूँ कभी कुछ
लगता है दिल बहका है इश्क़ से ।।

कभी इधर कभी उधर चलता हूँ
दिल मंज़िल से भटका है इश्क़ से ।।

भूलना चाहता हूँ पर भूल नहीं पाता
दिल को ऐसा दर्द मिला है इश्क़ से ।।

कभी पहचाना जाता हूँ कभी भूला जाता हूँ
दिल ऐसा नुमाया हो गया है इश्क़ से ।।

राज़ तुम राज़ रखो …

यज्ञ राज़ तुम राज़ रखो
जुबां पे क्यों उनका नाम आया है ।।

दहक उठेंगे जल उठेंगे सभी
जान कर क्यों ये आग फैलाया है ।।

बेखरों को खबर हो जाएगी
आज क्यों दर्द तुम्हरा बहा आया है ।।

न ग़म रखो न खुशी से बहको
जो तुमने मोहब्बत उनका पाया है ।।