पीर पड़ी भक्तन पर, कहाँ हो भगवंता
भक्त विनय करें द्वारे, सुनी लो हनुमंता ।।
हे संकट मोचन धीर , रामदूत बलबीर
हे रामभक्त पवनसुत, काटों मोरी पीर ।।

पीर पड़ी भक्तन पर, कहाँ हो भगवंता
भक्त विनय करें द्वारे, सुनी लो हनुमंता ।।
हे संकट मोचन धीर , रामदूत बलबीर
हे रामभक्त पवनसुत, काटों मोरी पीर ।।
विरासत की आजादी, है उत्सव मना लो
मजहब को भुलाकर सब, यज्ञ गले लगा लो ।।
स्वतंत्रता के मायने, जाने कैदखाने
कैसे तड़पते थे यज्ञ, उड़ने को दिवाने ।।
जय भारत जय भारती, भारत पुत्र जुबानी
जननी ये धरा मेरी, लिखूं नयी कहानी ।।
रेशम डोर प्रण बंधे, जग में येही रीत
मन से मन बधना होय , भाई बहना प्रीत ।।
गुरु ग्यानरुपा देव यज्ञ, गुरु प्रभु दर्श दवार
देह नश्वर है जग मा , राम नाम ही सार ।।
सेहत खजाना होये, यज्ञ कर ले कछु योग
तन मन सुदृढ़ होय रे, नित्य करे जो योग ।।
गुरु दयाल गुरु कृपाला , कबीर करे गुणगान
गुरु गोबिंद सो महान , यज्ञा सार गुरु ज्ञान ||
रहिमन पानी रखिये, बिन पानी बचे न कोय
तरुवर सूखे घरती फटे तिलतिल हर जीवन होय ।।
पानी संचय रखियो, खेत खलिहान जीवन भरपूर
बह मिलो जो सागर को, न जीव जन अनुकूल ।।
परिंदा प्यासा तरुवर प्यासा, प्यासा रे जन
जीव जंतु का दोष नहीं, मानुष छेदा धरती तन ।।
1. कहत कबीर सुन भई साधो संत रहे न संत
जात पात के फेर लिए बिखर रहे सब पंत ।।
2. बैर भरा मन ‘यज्ञ’ कोयला समान
कालीक रह जात हे जो गये खान ।।
3. राजा स्वामी राज करे झूठे बोल फलस्वरूप
अनुयायी पंत उपभोग करे अपने स्वार्थ अनुरुप ।।
ये खुशीयाँ कैसा ये उमंग क्यों ये उल्लास क्यों रे भाई
तेरा बरस नहीं बीता फिर क्यों चीख चिल्ला रहा है भाई ||
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मैं रहूँ ना रहूँ मेरे अल्फ़ाज़ जाविदां हैं, कल मिलू ना मिलू यह अंदाज़ अलहदा है...
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