आसमान में रंग भरते थे
चाँद सितारों के संग
जमीन में खेला करते थे
अब खो गई है वो मासूमियत
वो लड़कपन बालपन मोबाईल और गैजेटों में
सिमट गये है थम गये है कदम
अपने ही गलियारों में
न नोक झोंक न दौड़ भाग
बैठे है टीवी के सामने
या लिये मोबाईल किसी कोनो में ।।
आज आसमान में पतंग नहीं
गुल्ली डंडा खोखो कबड्डी नहीं
लुका छुपी भी अब कहीं गुम हुई
स्वच्छंद तितली भौरों से घुमा करते थे
अब बच्चों के दायरे सिमित हुई
ना दादा दादी के संग आमोद-प्रमोद
ना माँ बाप के संग बैठ विनोद
त्योहारों का ना उत्साह है
काटुन और वीडियो गेम में
बच्चे ऐसे रत हुये
न उमंग है खेल कूद का
न ललक है नई चीज का
बस घर के कोनों में
रंगीन बच्चे बेरंग हुये ।।