मेरा भोलापन
किसी को रास आ गई
वक़्त मिलते ही
ये उसके काम आ गई ।।
अब सोंचता हूँ…
भोलापन अच्छा था
या चालाकी
जो मुझे खा गई ।।
poems
खून से दी है आज़ादी
आज का दिन हम भुलाए कैसे
तेरे बलिदान को हम भुलाए कैसे
अपने खून से दी है आज़ादी
ये कर्ज़ हम चुकाए कैसे ।।

आज़ाद भगत राजगुरु सुखदेव सुभाष
ऐसे ऐसे वीर शहीदों के बलिदान है
जिन्होंने…
धरती चुम रंग दे बसंती गाया था
अभिमान तोड़ कर गोरों की
क्या खूब नाच नचाया था
जिन्होंने…
ने माँ भारती का मान बढ़ाया था ।।
मैं मिट्टी हूँ …
तू चमक बरस मैं मिट्टी हूँ
तुझ संग मिल जाऊँ
गर कोई बोया होगा तो
उस बीज को उपजाऊँ ।।

न मुझ में जहर डाल
अपने मतलब का
जो कुदरत दिया है
उसे संभाल कर रख
नहीं तो कहर बरसाऊँगा ।।
कुदरत को समझ
मुझको समझ
रे बंदे…
मैं मिट्टी हूँ… मिट्टी
जो बोय उसे लहलहाऊँ ।।
गुरु … बिन सब अधूरा

गुरु तुझ बिन सब अधूरा
ये ज्ञान ये शिक्षा न हो पूरा
अंधकार अंत हीन दिशा पे चले
गुरु जब हाँथ थामे तो
लक्ष्य मिले हो उजियारा ।।
मैं तुम्हें खुद को सौंप दू
चंचल मन मेरा मोरी माटी है गिली
गुरु तू सांच दे आकार दे
शांत कर चित मेरा
मन से विकार निकाल दे ।।
बस शोर गूंजे …

देश बट गया है दलों में
छोटे बड़े मजहबीयों में
आज कोई भारतीय नज़र
नहीं आता भारतीयों में ।1।
कई विषधर उलगे है विष
अपने मतलब के दंगलों में
जनता बिचारी पीस रही
उनके स्वार्थ के जातों में ।2।
कहीं लड़ाई वंदे मातरम
है कहीं श्री राम भक्तों में
चूल्हे कभी कभी जलती
बेरोज़गारों और भूखों में ।3।
जयहिंद फौज कि नईया डूबी
अपने ही अहिंसा के रागों में
ये वसुंधरा बेचैन हो रही
इन जिहादी आगों में ।4।
झुलस रहे तेरे मेरे स्वप्न
राजनीति के आँगरों में
गूंज रही अलग अलग स्वर
हर एक गलियारों में ।5।
एकता का कोई जोर नहीं
देश बटी राजनीति नारों में
न वंदे मातरम न जय हिंद
बस शोर गूंजे अलगावों में ।6।
शाम होने को है …
सूरज की तीक्ष्ण किरणे
अब मद्धम होने को है
दूर क्षतिज में लालिमा
सजने को है
तेरे संग पल दो पल
बिताने की आस है
नुक्कड़ की चाय
दिन भर की थकान भरी किस्से
सुनने की प्यास है
मिलने आना मेरे यार
शाम होने को है …
अपने अड्डे पर ।।
मेरे हुक्मरान बड़े मस्त है … 2
मेरे हुक्मरान बड़े मस्त है
और हम यहाँ त्रस्त है
हम चूल्हे जलाने का प्रयास करते है
वो घर जलाने को नियत रखते है
हम बुझी रख को समेट रोते है
वो रख में खड़े हो कर राजनीति करते है
जोड़ते है तोड़ते है गठबंधन
मतलब के सारे खेल खेलते है
और उन्हें हम फिर चुनते है
और फिर…
हम त्रस्त है… वो मस्त है ||
To be continue…. part 3
इंसाफ कौन करेगा …
अखबार जल रही है, समाज सहम रही है
कुछ लोगों के करतूतों से, आसमान डर रही है ।।
इस्तिहारों में सुर्खियों में जुबां में
दरिंदों की हैवानियत गूंज रही है ।।
शासन है प्रशासन है समाज है
बेजुबान सा बेबसी झलक रही है ।।
आवाज कौन करेगा, पुकार कौन करेगा
उस चीख का तन मन पीर का इंसाफ कौन करेगा ।।
राजशाही चुप है आज बवाल कौन करेगा
पक्ष है न विपक्ष है सवाल कौन करेगा ।।
जनता को मसाल बना है
सच झूठ को समझना है
जो दिल सहम रही है
उसे अंगार बनना है
कराल विक्राल बनना है
तुझे ही दुर्गा काली बनना है ।।
कबीर दास जयंती
गुरु दयाल गुरु कृपाला , कबीर करे गुणगान
गुरु गोबिंद सो महान , यज्ञा सार गुरु ज्ञान ||