पीछे छूट गये …

उम्र का कोई मेल नहीं
वो उम्र भी कितना अच्छा था
जब दादी नानी की
कहानी लुभाती थी ।।
वो दौर भी क्या खूब था
जब जुबान मीठी लगती थी ।।
बेवजह झगड़ा कर
कुछ पल में संग हो जाते थे ।।
बेवजह इसके उसके घर चले जाते थे
कुछ चीज को देख मन में
पाने की ज़िद हो आती थी ।।
समझ नहीं था तब…
पर अच्छा था
आज अपना पराया सब जान गये
हम से मैं होना को जान गये
तेरी मेरी की कहानी जान गये
मेल मिलाव अपने
हम उम्र से ही होता है अब
रोक टोक अब, दादी नानी की चुभती है
रंज दोस्तो का लंबा चलता है
और हाँ बेवजह अब
उसके घर जाना भी नहीं होता है
कुछ पाने की ज़िद को
टाल नहीं सकता कोई ।।
जाने के कैसा दौर है
जिसने दादी नानी की
कहानियों से दूर तो किया
और उनका जबान
कड़वी लगने लगी …
गर मैं समझदार हुआ
तो क्या फायदा
ना जाने कितने
बचपन की लुभानी
सुहानी कड़ियाँ
पीछे छूट गये ।।

खो गई … मासूमियत

आसमान में रंग भरते थे
चाँद सितारों के संग
जमीन में खेला करते थे
अब खो गई है वो मासूमियत
वो लड़कपन बालपन मोबाईल और गैजेटों में
सिमट गये है थम गये है कदम
अपने ही गलियारों में
न नोक झोंक न दौड़ भाग
बैठे है टीवी के सामने
या लिये मोबाईल किसी कोनो में ।।

आज आसमान में पतंग नहीं
गुल्ली डंडा खोखो कबड्डी नहीं
लुका छुपी भी अब कहीं गुम हुई
स्वच्छंद तितली भौरों से घुमा करते थे
अब बच्चों के दायरे सिमित हुई
ना दादा दादी के संग आमोद-प्रमोद
ना माँ बाप के संग बैठ विनोद
त्योहारों का ना उत्साह है
काटुन और वीडियो गेम में
बच्चे ऐसे रत हुये
न उमंग है खेल कूद का
न ललक है नई चीज का
बस घर के कोनों में
रंगीन बच्चे बेरंग हुये ।।

ठेके के संस्कार…

माँ बाप दफ्तर पे, देखें है मैं बढ़ते तकरार
परवरिश कर रही बच्चों को, ठेके के संस्कार ।।

पिता है… कंस रावण से
बेटा राम का है दरकार ।।

जरुरत दिन बदिन बढ़ रही
जाने कैसी महंगाई की है मार ।।

संतोष भी तो मन करता नहीं
बंगला कार ए.सी. का करता है दरकार ।।

बच्चों की फीस भरे, या घर का राशन
महीने पुरते नहीं, और जिंदगानी फिर है उधार ।।

बचपन… Childhood

पहले जैसे मासूमियत
वो समर्पण
अब नहीं है मुझमें
दाँत से काँट
गोली बाँट
खाया था हमने
अब समझदारी
का रोग लगा है
वो निःस्वार्थ हिस्सा
अब झूठा लगता है मुझे ।।1।।

अब आधा नहीं
पूरा हिस्सा
चाहिये जमीन का
बैठ कभी खाये थे संग
वो भाई की थाली
अब झूठी लगती है मुझे ।।2।।

न हदें न सरहदें
रिश्तों के बीच
न कोई लकीर थी
न पहले जैसे प्यार
वो विश्वास
अब, नहीं है मुझमें
दिलों में गाँठ
दिलों में फाँस
अब है अधिक
जब से रोग लग है
हर निश्छल प्रेम
अब झूठा लगता है मुझे
बंधन का रोक टोक
आकरण लगता है मुझे ।।3।।

बचपन… Childhood

childhood

क्या हम थे क्या तुम थे
कितने अच्छे वो बचपन के वो दिन थे ||
सब कुछ तेरा सब कुछ मेरा था
सारा जहान अपना था
न कोई सरहद न कोई बंदिशें थे ||