तेरे जाने के बाद …

क्या बदल गया
तेरे जाने के बाद
वक़्त बे’वक़्त हाँथों में जाम
और कुछ मेरे चेहरे के बाल ।।

हाँथ से जाम छूटता नहीं
तेरा नशा उतरता नहीं, तेरे जाने के बाद ।।

ये वहम आज भी है
तुझे भूल जाएंगे हम, तेरे जाने के बाद ।।

कमरे कुछ बिखरी है, कुछ कपड़े मैले है
भूख अब नहीं लगती, तेरे जाने के बाद ।।

सुबह अब होती नहीं
दफ्तर का समय बिगड़ा, तेरे जाने के बाद ।।

शाम का इंतजार नहीं
अब रात सोती नहीं, तेरे जाने के बाद ।।

इंद्रजीत लक्ष्मण हुये… उर्मिला के त्याग से

lakshman

सीता ही वियोगिनी नहीं थी
उर्मिला की बिरहा लम्बी थी भाई
दस बारह मास बिरहा सीता की
उर्मिला की चौदह वर्ष है निभाई |1|

राम सीता वनवास गये
लक्ष्मण ने सुख त्यागा
चौदह वर्ष सेवा किये
निद्रा भोजन लखन त्यागा |2|

गुरु विश्वामित्र से विदया
निराहार का लक्ष्मण ने पाया
दिन में सेवा रात में सुरक्षा
माता सुमित्रा का वचन पाया |3|

माता को दिये वचन न टूटे
भाई लखन ने निद्रा को जीत डाला
स्वामी के वचन न टूटे
स्वामी के भार अपने पलकों में डाला |4|

चिर निद्रा के बिछौने पे
उर्मिला ने चौदह वर्ष सो गई
भोजन जल त्याग
उर्मिला स्वामी की हो गई |5|

अजर अमर होने को
इंद्रजीत ने मांगे थे वर
इंद्र का बंधन छुड़वा
ब्रम्हा ने दिये थे वर |6|

चौदह वर्ष भोजन निद्रा
न देखे मुख स्व नार
जीत’ही वो मानुष
करहि इंद्रजीत को पार |7|

नियति मेघनाथ के वध को
लखन राम संग ले गई
उर्मिला के कारण लखन
इंद्रजीत की नियति बन गई |8|

लखन इंद्रजीत कहलाये
उर्मिला कहलाई सती
चिर निद्रा में खोई वो
प्रतीक्षा करे पति |9|

ये भेद ऋषि अगस्त्य ने
श्री राम को बताये
इंद्राजीत के वध को
लंकेश से दुष्कर बताये |10|

लक्ष्मण ने त्याग प्रेम समर्पण से
अपने वचन को निभाये
पति की संगनी उर्मिला भी
अपने स्वमी का भार उठाये |11|

मधुसूदन जी के रचना से प्रेरणा ले , मैं प्रयास किया है ….

तुम नादान हो तुम अनजान हो

तुम नादान हो तुम अनजान हो
सियासी खदरों पे यकीनन करते हो
तुम भी क्या खूब, कमाल करते हो
चोरों से चौकीदारी की उम्मीद करते हो ।।

दिल अब तुम पर क्यों यकीनन करे
जब भी मेरे दर आते हो ठगा करते हो
न सड़कें बनी न बिजली आई
सुखी है धरती , और तुम …
फसल खरीदने की बात करते हो ।।

कभी हम कभी वो नंदान थे

कभी हम कभी वो नंदान थे
कभी हम कभी वो इश्क़ से अनजान थे
कभी हम कभी वो नज़रे चुराये
नज़रों में हया का पर्दा होता तो अच्छा होता… मगर
कभी हम’में कभी उन्हें कुछ गुमान थे ||

दो जिस्म करीब आ गये…

दो जिस्म करीब आ गये… मगर
दिल से दिल की दुरी … अभी तय करना है
हया का पर्दा … हया का पर्दा…
नज़रों से … अभी दूर करना है
झांक कर उनकी नज़रों में
कभी दुनिया को… कभी खुद को देखना है ||

माँ है तो , मैं हूँ… 2 (माँ… अम्मा… Mother)

Part … 1

स्पंदन सांसों का तुम से ही
धमनी शिराओं में
रक्त का प्रवाह तुम से ही
जिस परमेश्वर को नहीं देखा
वो आस्था तुम से ही ।।

ये संभले हुए मेरे कदम
माँ, तुम से ही ।।
मेरा रुप, रंग, ये कद शरीर
सब, माँ तुम से ही ।।
मेरे मुख का पहला शब्द
माँ तुमसे ही हो
मेरा आचरण, व्यवहार, ये संस्कार
सब , माँ तुम से ही ।।

तुमने जाया है तो मैं हूँ
तुमने जाया और पिता का पहचान दी है
धूप छाओं, वर्षा शीत का पहचान दी है
तेरे ममता ने, तेरे आँचल ने
हर रोग दोष से रक्षा की है
अच्छे बुरे की सिख दी है ।।

माँ, तुम ही कहानी हो
तुम ही लोरी हो
मेरे ईश्वर, मेरे परमेश्वर तुम हो
मेरे गुरु, गुरुवेश्वर तुम ही हो ।।

तुम ही काव्य कविता
गद्य पद्य, सब तुम ही हो
तुम ही दोहा लोरा सोरठा
छंद अलंकार रस, सब, तुम ही हो
माँ, मेरा व्याकरण, हलंत, विसर्ग,
विराम, तुम ही हो ।।

माँ, तुम से, मैं हूँ
माँ है तो , मैं हूँ ।।

To be continue … 3