मेरा भोलापन
किसी को रास आ गई
वक़्त मिलते ही
ये उसके काम आ गई ।।
अब सोंचता हूँ…
भोलापन अच्छा था
या चालाकी
जो मुझे खा गई ।।
Kavita
कभी तुम हमारा … कभी तुम भी अपना

कभी तुम हमारा सुना लिया करो
कभी तुम भी अपना कहा दिया करो ।।
चाहो न चाहो दर्द की रात बित जाएगी
चाहो तो फिर याद करो या भुलाया करो ।।
क्या अच्छा क्या बुरा दिन जिंदगी के
बैठ उंगलियों में करम उसके न गिनाया करो ।।
टटोल ले अपने मन को भी कभी
गैरों को आईना बस न दिखया करो ।।
झाँक कर अपनी गिरेबान को यज्ञ
फिर कहीं जा के ऊँगली उठाया करो ।।
यही वक़्त है
साथ चलने का
हाँथ थमने का
बूरा वक़्त दिलाती है
पहचान अपनों का …
क्यों टुकड़ों में जीना
क्यों एकता को है खोना
यही वक़्त है
एक होने का …
जो वतन के नहीं
वो तुम्हारे क्या होंगे
यही वक़्त है
संभलने का ।।

बे-मतलब कौन
सब मतलब है मतलब है
ढोल तासे मंजीरा घण्टी बेमतलब कौन बजाए
ये दौड़ भाग भाई दौड़ भाग
हर कोई राजनीति में दौड़ लगाए
जिसे वो माने गुने नहीं वो भी
गंगा में गोता लगाए
जिनको जिसकी विसर्जन यात्रा चुभती थी
वो ही अब उनकी ही पाठ सुनाए
धर्म कर्म है सब दिखावे के
मतलब पे जनेऊ बाहर निकल जाए
जाट पात पंत में बाँट कर
ये सब बस माल दबाए
दिखते है उठाते है एक दूसरे पे ऊँगलियाँ
पर मतलब पे एक हो जाए
इन्हें बेहाल जनता न देश दिखे
इन्हें तो बस अपनी खुर्सी ही नज़र आए ।।

ग़रीब सा बदन मेरा …
धूप ओढ़ लेता है
ग़रीब सा बदन मेरा
के ये भीग जाता है
कभी अपने आँसूओं से
कभी अपने ही घरौंदे में
यूँ हर मौसम देख लेता है
ग़रीब सा बदन मेरा ।।
गिरहे से पैर बाहर
निकल जाता है जब
अपने ही चादर में तब
सिकुड़ सा जाता है
ग़रीब सा बदन मेरा ।।

पसीने से लथपथ
तरुवर की छाया में
बुखार सा तपता है
यूँ हर मौसम देख लेता है
ग़रीब सा बदन मेरा ।।
एक महीने की है जलन
इस जेठ महीने की
मेरे भीतर पेट में
ऐसी ही आग है भूख की
जो हर महीने सहता है
ग़रीब सा बदन मेरा ।।
बाहर निकल कर देखतें है
हमारे पास जो कुछ है
उसी में जी कर देखतें है
मज़िल मिल ही जाएगी
रास्ते बदल कर देखतें है ।।
जिंदगी यूँ भी हसीन है यज्ञ
दिल की चाहतें कब कम हुई
अब चाहतों के दरिया से
बाहर निकल कर देखतें है ।।

दौड़ता भागता ही रहा तू
ज़माने के कई धोखे के पीछे
मन को कठोर कर यज्ञ तू
अपने मन को थाम कर देख
अब सच के लिए थम कर देखतें हैं ।।
धोखा …
धोखा तुम गैरों को दे सकते हो
यज्ञ… पर तुम
क्या अपने दिल को दे पाओगे ।।
नज़र भर कर देख
ज़माने में रौशनी है
आँख बंद करके
क्या इसे झुठला पाओगे ।।

और बहते पानी को बहने दे
कुछ देर के ठहराव से
सागर से मिलने को
नदी को क्या रोक पाओगे ।।
सच की डोरी थम रे यज्ञ
जीवन की हकीकत पहचान रे यज्ञ
वक़्त के साथ चलना सीख
कोई जतन से क्या वक़्त रोक पाओगे ।।
मुताबिक
मुताबिक …
क्या अच्छा …?
क्या …?
बुरा है साहब
सब नज़र का
धोका हैं
इंसा यहाँ
अपने मतलब को
पाने के लिए
बस रोतें है ।।

किसको तौल
रहा है तू यज्ञ
हँसी-खुशी
ग़म ए ज़ख्म को
या अपने प्यार को
ये जिंदगी है साहब
यहाँ कब …?
अपने मुताबिक
कुछ होता है ।।