जान हो

इसका उसका तुम सब की जान हो
क्या बतायें तुम हमारी पहचान हो ।।

तेरे नाम से ज़माना मुझे जानता है
तुम मेरी जिंदगी का अभिमान हो ।।

माना की तुम हमें नहीं जानते इसमें
तुम्हारी क्या ख़ता की तुम हमारी जान हो ।।

हम तुम्हें चोरी छुपे देखते है देखते रहेंगे
नहीं चाहेंगे कि ज़रा भी तुम्हारा अपमान हो ।।

हर्ज़ क्या है …

चलते रहना देख जिंदगी का शर्त क्या है
यज्ञ थम गये तो जिंदगी का अर्थ क्या है ।।

जब किसीके काम ही न आये तो
फिर जुबां खोलने का तर्क क्या है ।।

हाँथ थाम ले अपने माता पिता का
तू समझ उनका ये कर्ज़ क्या है ।।

तुम तो न बरसाओ अंगारे यज्ञ
फिर तुझमें और उसमें फ़र्क़ क्या है ।।

जब न किये किसके मोहब्बत तो
फिर ऐसी जिंदगी का अर्थ क्या है ।।

माना वो ख़्वाब यज्ञ न होने पूरे
पर यारों देखने में हर्ज़ क्या है ।।

तुम बल देती हो …

तुम मुझे गणित सी लगती हो
जितना समझना चाहूँ
तुम उतनी ही उलझती हो ।।

रसायन के क्रिया भी
मोहब्बत से मिलती जुलती है
मोहब्बत के रसायन
पड़ते ही तुम रंग बदलती हो ।।

भौतिक विज्ञान का प्रयोग
भौतिकता में उपयोग करता हूँ
मेरे इज़हार को ठुकरा कर
जब तुम मुस्कुराते हो
मुझे पुनः प्रयास करने को
तुम बल देती हो ।।

तेरे न कहने से जो
मेरा हृदय टूटा
दर्द ग़म में डूब कर
अपने हाल को लिखा
यूँ ही मेरी लेखन को
तुम प्रेरित करती हो ।।

तेरी मर्ज़ी …

अब हमने उन्हें थमा दिया
अपने दिल का बागडोर
अब चाहे इसे मतलब समझो
या समझो इसे प्यार ।।

अब तुम
ढील दो दिल की पतंग को
या खींच कर रखो
स्वछंद उड़ने दो
किसी अनजान राह पर
उसे छोड़ कर
अब ये है तेरी मर्ज़ी
हम सफ़र करते रहेंगे
एक तुझे याद कर ।।

बदनाम हर जुबाँ पे होना है

हर्फ़ हर्फ़ बदनाम हर जुबां पे होना है
इश्क़ की गलियों में और क्या होना है ।।

बिछाड़न और तन्हाई ही मिलती है दीवाने
फिर क्या दिल को तड़प तड़प बस रोना है ।।

उम्मीद क्यों रखा है पगले उसे पाने का
ये जिंदगी है यहाँ पा के सब खोना है ।।

बदलते रहते है करवटें रातों को दीवाने
रात हो या दिन बेचैन दिल को कहाँ सोना है ।।

प्यार ही रवानी है

अपनी जिंदगी की तो यही कहानी है
दौर ए मुफलिसी अपनी ही ज़ुबानी है ।।

यारी अपनी ऐसे ही मज़बूत होते गई
ये फटे पन्ने क़िताबों के कहती कहानी है ।।

रिश्ता कितना गहरा था तेरे मेरे बीच
ये सूखा हुआ गुलाब उसकी निशानी है ।।

जीते जी वतन से प्यार ही रवानी है
यज्ञ बाकी बातें तो बस आनी जानी है ।।

कोई दर्द याद आया …

पास आया कोई रात जगाने को
कोई दर्द याद आया रोलाने को ।।

ख़्वाब था ख़्वाब ही है वो अब भी
पलकों में है समाया नींद उड़ाने को ।।

बात कुछ इस कदर बिगड़ गई के
दर्द उभर आया जख़्म दिखाने को ।।

मुझे छूना गवारा नहीं था जिसे वो
सीने से लगया अपना ग़म भुलाने को ।।

अब करें तो क्या करें इस नसीब का
के तुम पे प्यार आया दिल दुखाने को ।।

सच पलती नहीं

क्यों नहीं
ये आग बुझती नहीं
क्यों नहीं
वो सवाल थमती नहीं
झुठ का अंधेरा
क्यों है फैला
क्यों हर दिल
अब, सच पलती नहीं ।।

नज़र में न शर्म है
अब कैसे बताये
बच्चे, बाप को भी
देख, नज़र झुकती नहीं ।।

उसका जो भी था
उसका है
आज भी
बेटियों को, क्यों
हक मिलती नहीं ।।

रोना ही है अब
रो लेंगे
ये वतन
बेड़ियों में तो नहीं
पर तू … क्यों
आज़ाद दिखती नहीं ।।

जहाँ भी होंगे
नज़र में लहू
भर लाते होंगे
हालात-ए-वतन
दिवाने-शहीदों के
मुताबिक
जो दिखती नहीं ।।

फैसला …

आज फिर चौपाल सजी है बैठक लगी है
आज फिर मेरे इश्क़ पे तोहमत लगी है ।।

देखतें है मेरे वफ़ा का क्या सिला होगा
देखतें है क्या मेरे हक का फैसला होगा ।।