धोखा … Cheat … फरेब … Fraud …

है हर अक्स पे धोखा
मतलब ज़रा अपना देख
परख रहे है अपने यहाँ
संभल कर ज़रा आईने देख ।1।

न सता इश्क़ के दीवानों को
ज़रा उनके हालत तो देख
दर-बदर से फिर रहे है
मंदिर माज़िद चौबारे देख ।2।

हुई सल्तनत तबाह कितने
आस्तीनों पे अपने झांक के देख
ना तूने ना मैं भरोसा किया
हुये कितने टुकड़े आज देश देख ।3।

रकीबों से कोई गिला नहीं
हबीबों की चाल देख
ढा गये चट्टन भी यहाँ
सरपरस्त चूहों के सुराख देख ।4।

फूल … महकने दो

कुछ वहम ही रहने दो
ख़्वाब बिखरे है मेरे
झुठ ही सजने दो
सच बहोत डरावना है
इश्क़ पाक है पुरनूर है
ये बात रहने दो ।।

हादसे हमने बहोत देखें है
अब चूर चूर होने दो
कब तक आखिर कब तक
फूल कुचलेंगे ये हैवान
मैं शीशा हूँ फिर भी
कुछ को तो चुभ जाऊँगा टकराने दो
आओ कोशिश करें
फूल खिलने दो महकने दो ।।

डरता हूँ…

जाने मैं कैसी कैसी बातें करता हूँ
मेरे इस अल्फाज को रोका क्यों नहीं करता हूँ
ता उम्र गुजर जाने के बाद
अब खुद को महफूज नहीं हूँ कहता हूँ ।।

क्या ये महज सियासी चाल है
या दकियानूसी बातें करता हूँ
मिला मुझे प्रसिद्धि , सम्मान और प्यार
सब झूठ है ये साबित करना चाहता हूँ ।।

जन्म हुआ जिस माटी पर
उस पर सवाल करता हूँ
बार बार एक बात
अपने मतलब की बातें करता हूँ ।।

पर मुझे सोचना चाहिये
मुझे डरना चाहिये
मेरे हर अल्फाज से पहले
उसके अंजाम का सोचना चाहिये ।।

मुझे झूठे अल्फाज से बचना चाहिये
मुझे इस झुठ को रोकना चाहिये
मुझे इस झुठ से टकराना चाहिये
मुझे इस झुठ को सच दिखाना चाहिये ।।

इसलिए कभी सोचता भी हूँ
ये अल्फाज क्यों…
ये बर्ताव क्यों…
ये बदलाव क्यों… जब हम, एक है ।।

कहीं पे तो हम एक है
तिरंगे को तुम भी मैं भी सलाम करता हूँ
जाने मैं किस बात से डरता हूँ
अब टुकड़े होने से डरता हूँ ।।

कुछ नाच नचाया जाये …

झूठ क्यों और कब तक
बोला जाये
क्या… केवल वोट के लिये
ही, झूठ बोला जाये ।।

अन्य किसी कारणों से
झूठ अपराध हो सकता है
किन्तु राजनीति में ही
झूठ क्षमा हो सकता है ।।

वचन अनमोल है
व्यर्थ किया जाये
झूठ के सहारे
चलो चुनाव लड़ा जाये ।।

कुछ बातें कुछ कहानीयाँ
कुछ जुमलें बनाया जाये
राजनीति के अंगीठी में
कुछ अपना रोटी पकाया जाये ।।

ऊँगलीयाँ अधिक कर लिये
नेता राजनेता… अब
अब, जनता ऊँगली कर
उन्होंने कुछ नाच नचाया जाये ।।

संभल… , संभल… ज़रा

मिज़ाज चेहरा घड़ी घड़ी क्यों बदल रहा
संभल ज़मीर तेरा, कहीं बदल न जाये ।1।

यज्ञ क्यों ये, हर्फ़ हर्फ़ झूठ तेरा
संभल सच तेरा, कहीं झूठ बन न जाये |2|

तेरी फरियाद भी कुबूल होगी
संभल दर्द तेरा, कहीं आह बन न जाये |3|

मुक्क़दर पे यकीं है तो, सब्र रख
संभल जल्दबाज़ी तेरा, कहीं पीछे… कुछ, छूट न जाये |4|

रेखाँयें तो बनती बिगड़ती है
संभल शौक तेरा, कहीं चाल बदल न जाये |5|

झूठ … lie …

एक रास्ता एक सफ़र मंजिल भी एक है
फिर भी कहते हो पहचानते नहीं
ये झूठ मुझ से कह रहे हो… या
अपने दिल से की हमे पहचानते नहीं ||

अँधेरा

dark night

मैं खुद से दूर होने लगा
स्वार्थ मेरा बढ़ने लगा
सच का दीपक बुझ गया… शायद
अँधेरा अंतर मन में फैलने लगा ||

अँधेरा = झूठ